Thursday, December 29, 2011

एड्स के ख़िलाफ़ अहम सफलता





वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने एक ऐसा टीका बना लिया है जो एड्स फैलानेवाले वायरस एचआईवी के ख़तरे को तीस प्रतिशत कम कर देगा.
थाईलैंड में अपनी इच्छा से आगे आए सोलह हज़ार लोगों पर इस टीके का परीक्षण किया गया है और इस पूरे कार्यक्रम के लिए पैसा अमरीकी सेना की तरफ़ से दिया गया.

एड्स के क्षेत्र में काम करनेवाले कई जानकारों ने इसे एक ऐतिहासिक मील का पत्थर बताया है.

वैसे तो ये टीका फ़ौरन ही दुकानों या अस्पतालों में पहुंच जाएगा ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा लेकिन इतने ज़्यादा लोगों पर पहली बार इस तरह का परीक्षण हुआ है और पहली बार सही मायने में उम्मीद जगी है कि एड्स का एक संपूर्ण टीका बनाया जा सकता है.

पूरी दुनिया में तीन करोड़ तीस लाख लोग एचआईवी से ग्रस्त हैं.

अबतक दवाओं से लोगों को कुछ राहत मिली है लेकिन पहली बार एक टीका बना है जो इसे रोक सके.
यहां तक पहुंचने में भी वैज्ञानिकों को सात साल लगे हैं.
वैसे तो इसकी शब्दावली काफ़ी जटिल है लेकिन आसान ज़ुबान में यही कहा जा सकता है कि ये टीका एचआईवी के संक्रमण के ख़तरे को कम करने में 31.2 प्रतिशत कारगर है.
थाईलैंड में हुए एक संवाददाता सम्मेलन में कहा गया कि ये टीका पूरी तरह कारगर तो नहीं है लेकिन सही दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है.
लैंसेट मेडिकल जरनल के संपादक डॉ रिचर्ड हर्टन कि इस टीके की खोज काफ़ी उत्साहजनक है और इससे कुछ शंकाओं के साथ ही सही लेकिन उम्मीद बढ़ती है.
इस टीके से दुनिया भर में चल रहे उन शोधों को भी मदद मिलेगी जहां कोशिशें चल रही हैं एक पूरी तरह से कारगर टीका बनाने की.

भारत ने बनाया नया परमाणु संयंत्र


भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रमुख अनिल काकोदकर ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा संघ के सम्मेलन में घोषणा की है कि भारत ने एक नया परमाणु उर्जा संयंत्र बनाया है.
अनील काकोदकर ने कहा है कि भारत ने 300 मेगावाट की क्षमता वाला एडवांस हेवीवॉटर रिएक्टर बनाया है जो ईंधन के लिए कम दर्जे के साथ थोरियम का इस्तेमाल करता है.

जहां तक थोरियम टेक्नॉलॉजी का सवाल है भारत में इसके विकास के लिए पिछले लगभग पचास वर्षों से काम चल रहा है और वो इसमें दुनिया में सबसे आगे गिना जाता है.

दुनिया के ज़्यादातर परमाणु रिएक्टर ईंधन के लिए यूरेनियम या प्लूटोनियम का इस्तेमाल करते हैं जबकि भारत के नए रिएक्टर का मुख्य ईँधन थोरियम है.

थोरियम भारत में बड़ी मात्रा में उपलब्ध है जबकि यूरेनियम के लिए भारत कई दूसरे देशों पर निर्भर है.
ज़ाहिर सी बात है कि एडवांस हेवी वॉटर रिएक्टर के विकास से भारत को अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में तो मदद मिलेगी ही लेकिन वो यह तकनीक अन्य विकासशील देशों को भी बेच सकता है.

थोरियम आधारित संयंत्र

भारत पहले ही 220 मैगावाट की क्षमता वाला थोरियम ईंधन पर आधारित रिएक्टर बना चुका है.
साइंस पत्रिका के भारत में पत्रकार और विज्ञान संबंधी मामलों के जानकार पल्लव बागला का कहना है, ''आने वाले दस वर्षों में भारत दुनिया के छोटे देशों को यह परमाणु संयत्र बेचने का इरादा रखता है.''

220 मेगावाट वाले रिएक्टरों के संबंध में कज़ाकस्तान और वियतनाम जैसे देशों को रूचि है लेकिन 300 मेगावाट वाले जिस रिएक्टर की घोषणा अनिल काकोडकर ने की है वो ज्यादा आधुनिक है और उसके निर्यात से पहले देखना होगा कि वो भारत में कितना सफल होता है.

पिछले साल भारत में अमरीका के साथ की गई परमाणु संधि को लेकर विवाद इस कदर बढ गया था कि यूपीए सरकार के बने रहने पर ही संकट छा गया था.

सवाल यह है कि जब भारत थोरियम पर आधारित परमाणु रिएक्टर विकसित कर चुका है तो फिर भारत को यूरेनियम पर आधारित रिएक्टर टेक्नोलॉजी पाने के लिए यह विवाद मोल लेने की क्या ज़रूरत थी.

1998 में भारत के परमाणु परीक्षणों में शामिल रहे वैज्ञानिक के संथनम कहते हैं, '' भारत इस मामले में दूरदर्शिता से काम ले रहा है और यह अच्छा कार्यक्रम है. भारत दो दिशाओं में इसलिए काम कर रहा है क्योंकि भारत को नज़दीकी भविष्य में अपनी ऊर्जा की ज़रूरत के लिए यूरेनियम आधारित रिएक्टरों की आवश्यकता है. लेकिन दूरगामी हितों को देखें तो भारत को परमाणु उर्जा में आत्म निर्भरता के लिए थोरियम पर आधारित रिएक्टर बनाने और उस टेक्नॉलॉजी का विकास करने की ज़रूरत है.''

के संथनम परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रमुख अनिल काकोदकर की इस दलील से भी सहमत हैं कि एडवांस हेवी वॉटर रिएक्टर में इस्तेमाल किए गए यूरेनियम सामग्री से हथियार बनाना भी मुश्किल होगा. अगर यह सही साबित होता है तो परमाणु अप्रसार के लिए कोशिश कर रहे देशों की चिंताएं भी कम होंगी.

दिमाग को दें नए विचारों की खुराक



हमारा दिमाग मांसपेशियों की तरह उतना सिकुड़ता या फैलता है, जितना हम उससे व्यायाम करवाते हैं। इसलिए दिमाग को नए विचारों की खुराक देते रहें।
हम सुनते रहे हैं कि ज्ञान एक शक्ति है, पर असल में ज्ञान तो महज जानकारी का नाम है। ज्ञान में शक्ति बनने की क्षमता है और यह तभी श्क्ति बनता है, जब इसका इस्तेमाल किया जाता है, इसे अच्छे विचारों की खुराक मिलती है।

इसके लिए हमें दुनिया से कदमताल कर चलना पड़ता है। कहीं आप चूक गए, तो दुनिया आगे निकल सकती है। जॉन को ही लें वह पांच साल से एक कंपनी के लिए काम कर रहा था। इन सालों में उसकी तनख्वाह एक बार भी नहीं बढ़ी थी। उधर एक नए लकड़हारे बिल की एक साल के अंदर ही तरक्की हो गई। यह बात सुनकर जॉन को बहुत बुरा लगा और बात करने के लिए वह अपने मालिक के पास जा पहुंचा। मालिक ने जवाब दिया, "तुम आज भी उतने ही पेड़ काट रहे हो, जितने आज से पांच साल पहले काटा करते थे। अगर तुम्हारी उत्पादन क्षमता बढ़ जाए, तो हमें तुम्हारी तनख्वाह बढ़ाने में खुशी होगी।"

जॉन वापस चला गया और पेड़ों की कटाई करने में खूब मेहनत से देर तक जुटा रहता। इसके बावजूद भी वह ज्यादा पेड़ नहीं काट पाया। निराश होकर उसने अपनी परेशानी मालिक को बताई। मालिक ने जॉन को बिल के पास जाने की सलाह दी, और कहा, "हो सकता है, उसे कुछ मालूम हो, जो हमें और तुम्हें मालूम नहीं है।" जॉन ने बिल से पूछा कि वह ज्यादा पेड़ कैसे काट पाता है। बिल ने कहा "हर पेड़ को काटने के बाद दो-तीन मिनट तक रूकता हूं और अपनी कुल्हाड़ी की धार तेज करता हूं। तुम बताओ कि तुमने आखिरी बार अपनी कुल्हाड़ी की धार कब तेज की थी?" बिल के इस सवाल ने जॉन की आंखें खोल दीं और उसको अपना जवाब मिल गया। जरा आप भी विचार करें क्योंकि बीते हुए कल के गौरव और शिक्षा से काम नहीं चलता। हमें अपने ज्ञान की धार को लगातार तेज करते रहना पड़ेगा, अपडेट रहना होगा अन्यथा बाजी किसी और के हाथ लग जाएगी।
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